ओजस्वी शक्ति
मनुष्य के जीवन रूपी नाव से पार लगाने वाला एक ही नाम है गायत्री गय कहते हैं प्राण को कहते हैं प्राण त्राण यानी रक्षा करने वाली जो प्राण की रक्षा करें उस महा शक्ति का नाम गायत्री है गा सब स्वयं में भी शक्ति का बोधक है जो पूरे ब्रह्मांड का बोध शब्द पूरी सत्रा को नियंत्रित करने वाला है
उसे यत्री कहना चाहिए गायत्री का अर्थ सर्वव्यापी परा और अपरा प्रकृति पर नियंत्रित करने वाली आत्म चेतना गा से गति देने वाली या से शक्ति दायक त्र से त्राण करने वाली ई स्वयं परम तत्व का बोधक है गायत्री सूर्य के सामने प्रकाश करने वाली होने से जगत को उत्पन्न करने वाली होने से सावित्री के नाम से कही जाती है और यही वाणी में रूप में होने से स्वरस्वती कही जाती है
गायत्री के द्वारा हम उस ब्रह्म चेतना प्राणशक्ति से ही अपना संपर्क बनाते हैं वैज्ञानिकों का भी कहना है कि इस पृथ्वी पर जो भी जीव जंतु पशु पक्षी मानव है यह सूर्य की सूक्ष्म करण शीलता के ही कारण है गायत्री का देवता सविता है सविता का मतलब रोशनी गर्मी देने वाले अग्नि पेंट के रूप
मनुष्य के जीवन रूपी नाव से पार लगाने वाला एक ही नाम है गायत्री गय कहते हैं प्राण को कहते हैं प्राण त्राण यानी रक्षा करने वाली जो प्राण की रक्षा करें उस महा शक्ति का नाम गायत्री है गा सब स्वयं में भी शक्ति का बोधक है जो पूरे ब्रह्मांड का बोध शब्द पूरी सत्रा को नियंत्रित करने वाला है
उसे यत्री कहना चाहिए गायत्री का अर्थ सर्वव्यापी परा और अपरा प्रकृति पर नियंत्रित करने वाली आत्म चेतना गा से गति देने वाली या से शक्ति दायक त्र से त्राण करने वाली ई स्वयं परम तत्व का बोधक है गायत्री सूर्य के सामने प्रकाश करने वाली होने से जगत को उत्पन्न करने वाली होने से सावित्री के नाम से कही जाती है और यही वाणी में रूप में होने से स्वरस्वती कही जाती है
गायत्री के द्वारा हम उस ब्रह्म चेतना प्राणशक्ति से ही अपना संपर्क बनाते हैं वैज्ञानिकों का भी कहना है कि इस पृथ्वी पर जो भी जीव जंतु पशु पक्षी मानव है यह सूर्य की सूक्ष्म करण शीलता के ही कारण है गायत्री का देवता सविता है सविता का मतलब रोशनी गर्मी देने वाले अग्नि पेंट के रूप
में होते हैं उसकी सूक्ष्म प्राण शक्ति से ओत पोत है
गायत्री की उपासना करने वाले को किसी का भी नहीं रहता है भयानक संकट आने पर बाहर निकालने वाली एक ही है गायत्री दूसरा कोई भी नहीं गायत्री का जप करने वाला कभी दुखी नहीं हो सकता वह स्वयं सक्षम हो दूसरों की भी मदद करता है वह एक राष्ट्र पुरुष बन जाता है समाज में उसकी रोशनी चारों तरफ चलती है स्वयं ज्ञानरूपी रोशनी से ओत पोत हो जाता है
राजा जनक गायत्री की उपासना से पूर्णता को प्राप्त कर सके के पूर्व जन्म के पुरोहित बेडिल मरने के बाद पशु योनि में चला गया राजा जनक ने अपने पुरोहित से पूछा आप पशु योनि में क्यों चले गए पूर्व जन्म में गायत्री का मुख नहीं समझ पाया इसलिए मेरे पाप नष्ट नहीं हो पाए गायत्री का प्रधान अंग मुख अग्नि है जिस में जो कोई तारा जाता है सब बस में हो जाता है उसी तरह गायत्री कामुक जाने वाला आदमी विमुख होकर पापों से मुक्त हो जाता है और अमर हो जाता है मुख का तात्पर्य ज्ञान से है जो ज्ञानी हो जाता है वह मुक्त हो जाता है
जो आदिशक्ति गायत्री की जीवन रूपी नाव में बैठकर संसार का आनंद लेकर पार उतर जाता है मेरे गुरु श्री राम शर्मा ने अपनी पुस्तक में भविष्य का भी उल्लेख किया है पुस्तक पढ़ कर जो ज्ञान की रोशनी बढ़ती है मै वह मैंने आपके सामने शेयर की है
राजा जनक गायत्री की उपासना से पूर्णता को प्राप्त कर सके के पूर्व जन्म के पुरोहित बेडिल मरने के बाद पशु योनि में चला गया राजा जनक ने अपने पुरोहित से पूछा आप पशु योनि में क्यों चले गए पूर्व जन्म में गायत्री का मुख नहीं समझ पाया इसलिए मेरे पाप नष्ट नहीं हो पाए गायत्री का प्रधान अंग मुख अग्नि है जिस में जो कोई तारा जाता है सब बस में हो जाता है उसी तरह गायत्री कामुक जाने वाला आदमी विमुख होकर पापों से मुक्त हो जाता है और अमर हो जाता है मुख का तात्पर्य ज्ञान से है जो ज्ञानी हो जाता है वह मुक्त हो जाता है
जो आदिशक्ति गायत्री की जीवन रूपी नाव में बैठकर संसार का आनंद लेकर पार उतर जाता है मेरे गुरु श्री राम शर्मा ने अपनी पुस्तक में भविष्य का भी उल्लेख किया है पुस्तक पढ़ कर जो ज्ञान की रोशनी बढ़ती है मै वह मैंने आपके सामने शेयर की है
No comments:
Post a Comment