Friday 1 February 2019

बच्चो मे डर

                              बच्चो मे डर 


पूरी दुनिया में लड़के लड़कियां बहुत कुछ करना चाहते हैं पर उन्हें कौन सी चीज रोकती है सबसे बड़ा कारण है डर बचपन से ही हमारे दिल दिमाग में डर बसा होता है अगर हम 10 क्लास में पढ़ाई नहीं करेंगे तो फेल हो जाएंगे यह सोचकर बच्चे सारा दिन किताबे लिए बैठे रहते हैं पर दिमाग की एक रिपोर्ट होती है 4000 शब्द प्रति मिनट 400 मिनट पर सेकंड फिर भी माता-पिता अध्यापक के डर से बच्चे सारा दिन किताब लेकर पढ़ते रहते हैं आगे चलकर यह डर इतना हावी हो जाता है कि बच्चा दब्बू डरपोक हो जाता है समय निकल जाता है और जॉब के लिए परेशान होता है
यही डर आगे चलकर उसके रास्ते का सबसे बड़ा कारण बनता है जॉब के लिए जिस रास्ते में पर डालता है डर पीछे खींच लेता है हमारे अवचेतन मन में वह डर बैठ जाता है तो आप चाहे जितना सीख ले चाहे जितना जान ले चाहे जो करले किसी चीज से कोई फर्क नहीं पड़ेगा बचपन में हम पर पढ़े डर का प्रभाव किस तरह हमारी भविष्य पर प्रभाव डालते हैं आपने देखा होगा एक ही स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे का एक सारा दिन खेलता है एक सारा दिन पढ़ाई करता है पर खेलने वाले के नंबर ज्यादा आते हैं और सारा दिन किताब लेकर बैठने वाले के नंबर काम आते हैं सवाल केवल हमारे दिमाग की लिमिट का है खेलने वाले का दिमाग शार्प होता है वह जो कुछ भी पड़ता है
उसके दिमाग में रिकॉर्ड हो जाता है और मैं भूलता नहीं है और सारा दिन किताब लेकर बैठने वाली का दिमाग पहले ही डर फालतू बातों से भरा हुआ है ता उसका दिमाग कैसे काम करेगा कहने का तात्पर्य है की अभी तो स्कूली पढ़ाई के बात है अगर ऐसे ही चलता रहा तो आगे चलकर जॉब के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी क्योंकि दिमाग में फालतू भरा पड़ा है ता जॉब लगना मुश्किल है अपने दिमाग को फ्रेश रखिए जितनी उसकी लिमिट है उतना उसे भरिए फिर थोड़ा मनोरंजन करिए फिर पढ़ाई पढ़िए इस हिसाब से पढ़ेंगे तो आप निश्चित ही सफल होंगे

एक कदम तरक्की की ओर

एक कदम तरक्की की ओर

अब बात आती है पैसा कमाने की क्या आपको पता है गरीब गरीब क्यों है अमीर अमीर क्यों है बात केवल सोच की है गरीब मेहनत करना नहीं चाहता है केवल अपने भाग्य को कोसता रहता है और अमीरों से नफरत करता रहता है अमीर की सोच इससे विपरीत होती है 

वह रात दिन केवल मेहनत करता है गरीबी कैसे हटाए जाए यह सोचता है केवल सोच का अंतर है अमीर लोग कहते हैं बचपन से अपनी सोच जागरूक रखो आलस्य त्यागो बचपन से अपना शेड्यूल ऐसा बनाओ आपको अच्छा भुगतान के लिए अच्छा बनना पड़ेगा अगर आप धन कमाने के लिए पूरी तरह समर्पित नहीं है तो आप धन कमा ही नहीं सकते हैं जितने भी करोड़पति अरबपति हुए हैं यह सब एक दिन गरीब ही थे पर इन्होंने अपने आप को धन कमाने में समर्पित कर दिया कड़ी मेहनत से आज वह समाज के बारे में सोच रहे हैं

 आप आसान रास्ता चुनेंगे तो आपकी जिंदगी मुश्किल होगी और अगर आप मुश्किल रास्ता चुनेंगे तो आपकी जिंदगी आसान होगी केवल सोच का फर्क है गरीब लोगों के पास धन आ जाए तो बैंक में जमा कर देते हैं और बार बार गिनते हैं कितने लाख हो गए हैं इससे जिंदगी आराम से कट जाएगी अमीर लोग धन को बीज के रूप में देखते हैं इतने धन से कितना धन कमाया जाए कहने का तात्पर्य है की अपनी आमदनी को कभी सीमा ओ मैं ना बांधे अपनी सोच को बढ़ा रखें और सकारात्मक और सफल व्यक्ति के सानिध्य मैं रहना चाहिए जिससे हमारे अंदर नकारात्मक विचार प्रवेश ही ना करें बड़े बूढ़े कह रहे हैं 

जैसा खाओ अन्ना वैसा बनेगा मन इसी प्रकार जैसी हमारी संगत होगी हम वैसे ही बन जाएंगे नकारात्मक व्यक्ति के संग रहेंगे तो हमारी तरक्की का भी हो ही नहीं सकती अगर हम सफल और सकारात्मक व्यक्तित्व की संगत में रहेंगे तो हम उन्हीं के जैसा बनेंगे और अगर हम आरामदायक वातावरण पसंद करते हैं 

तो भी हमारी तरक्की मुश्किल है आरामदायक वातावरण से निकल कर धन कमाने में समर्पित हो मुश्किल रास्ता चुने सफलता पाने का एकमात्र उपाय है अपनी गतिविधि बनाना आप अपनी गतिविधि बढ़ा ए गे तो स्वाभाविक है आपकी ऊर्जा पड़ेगी और आप काम कर सकेंगे

Thursday 24 January 2019

पति पत्नी में प्रेम

पति पत्नी में प्रेम

हमारे हिंदू धर्म में पति पत्नी का रिश्ता पवित्र रिश्ता माना गया है पत्नी को धर्मपत्नी कहा जाता है जो धर्म से जुड़ी हो वह धर्मपत्नी और जो धर्म से जुड़ा हो वह धर्म पति जिसे धर्म पति मिल जाए उसकी जिंदगी तर गई मानो विवाह होते सात फेरे होते हैं फेरों में सात वचन दिए जाते हैं यह सात वचन है 

पहला वचन है यदि कभी तीर्थ स्थान में आप जाएं मुझे भी साथ ले जाएं व्रत हवन पूजा पाठ हवन पूजा पाठ उपवास करें उस में मेरी भागीदारी हो तो मेरी स्वीकारता है दूसरा वचन है जिस तरह आप अपने माता पिता का सम्मान करते हैं उसी प्रकार मेरे माता-पिता का सम्मान करें और मेरे परिवार पास पड़ोस रिश्तेदार धर्म अनुसार उन्हें मानते रहे तीसरा वचन है

 यदि आप युवा प्रोण वृद्धावस्था मैं जीवन भर आप मेरा साथ देंगे मेरी स्वीकारता है चौथा वचन है यदि आप अपनी मेरी जिम्मेदारी निभाएंगे तो मेरी स्वीकारता है पांचवा वचन है किसी प्रकार के कार्य लेन-देन में आप मेरी सहमति लेंगे तो मेरी स्वीकार्यता है छटा वचन है आप मेरी सहेलियों स्त्री परिवार पड़ोस के सामने मेरी बेज्जती नहीं करेंगे शराब नशा से दूर रहेंगे तो मेरी स्वीकार्यता है सातवां वचन है पराई स्त्री तो आप मां समान समझोगे और पति-पत्नी के आपसी प्रेम के बीच अन्य किसी को ना आने देंगे तो मेरी स्वीकार्यता है 

विवाह के समय पत्नी अपने पति से यह सात वचन लेती है और वाकई में यह रिश्ता चलता भी है भारत में कितना भी संकट आ जाए पति पत्नी का रिश्ता कभी पति पत्नी का रिश्ता कभी टूटता नहीं है पत्नी को गृह लक्ष्मी भी कहा जाता है नारी को ईश्वर ने सुंदरता भावुकता कोमलता और कलाकारीता इन सब से नारी परिपूर्ण होती है मात्र इन गुणों को खुरेदने की आवश्यकता है वह हम प्रेम द्वारा कर सकते हैं हर नारी में यह गुण होते हैं विदेशों में एक पत्नी से सीमित नहीं होते जरा सा कष्ट आने पर वह उसे अपने लायक नहीं समझते और दूसरा विवाह फिर तीसरा विवाह बिना विवाह के बने रहते हैं बूढ़े हो जाते हैं फिर भी यही दशा बनी रहती है जिसे जो जिसके साथ सुविधा देखता है 

उसी के साथ रहने लगता है बहुत ही कम देखने को मिलता है जो एक पत्नी के साथ रह रहा हो भावनात्मक रूप में 4 कर्तव्य आते हैं समझदारी ईमानदारी बहादुरी जिम्मेदारी अगर हर पति पत्नी मैं यह सभी भावनात्मक गुण आ जाए तो हर पति पत्नी अपनी पूरी जिंदगी आराम से व्यतीत कर सकता है पति पत्नी की सगन आत्मीयता ही उसे सफल बनाती है पति पत्नी को हमेशा अपने लिए कठोर और साथी के लिए उधार रह करही इनके बीच अटूट प्रेम रहता है

 अगर पति पत्नी अपने स्वार्थ की ना सोच कर अपने साथी के लिए सोचे तो यह रिश्ता कभी टूट ही नहीं सकता की पत्नी गाड़ी के दो पहियों के समान होते हैं एक पहिया डगमगाया मानो पूरी गाड़ी पलट गई जब दोनों पहले सामान सीधे चलते हैं तभी गाड़ी सुचारू रूप से चलती है जो पति पत्नी एक दूसरे के कष्टों में भी साथ ना छोड़े वही महान होते हैं इसी से इनकी इमानदारी का पता चलता है अगर दोनों में से एक भी ज्यादा प्रेम करता है तो जिंदगी चलती रहती है एक ज्यादा प्रेम करें और दूसरा धार्मिक प्रवृत्ति का हो तो जिंदगी आराम से चलती है

Wednesday 23 January 2019

ओजस्वी शक्ति

ओजस्वी शक्ति
मनुष्य के जीवन रूपी नाव से पार लगाने वाला एक ही नाम है गायत्री गय कहते हैं प्राण को कहते हैं प्राण त्राण यानी रक्षा करने वाली जो प्राण की रक्षा करें उस महा शक्ति का नाम गायत्री है गा सब स्वयं में भी शक्ति का बोधक है जो पूरे ब्रह्मांड का बोध शब्द पूरी सत्रा को नियंत्रित करने वाला है

उसे यत्री कहना चाहिए गायत्री का अर्थ सर्वव्यापी परा और अपरा प्रकृति पर नियंत्रित करने वाली आत्म चेतना गा से गति देने वाली या  से शक्ति दायक त्र से त्राण करने वाली ई स्वयं परम तत्व का बोधक है गायत्री सूर्य के सामने प्रकाश करने वाली होने से जगत को उत्पन्न करने वाली होने से सावित्री के नाम से कही जाती है और यही वाणी में रूप में होने से स्वरस्वती कही जाती है
गायत्री के द्वारा हम उस ब्रह्म चेतना प्राणशक्ति से ही अपना संपर्क बनाते हैं वैज्ञानिकों का भी कहना है कि इस पृथ्वी पर जो भी जीव जंतु पशु पक्षी मानव है यह सूर्य की सूक्ष्म करण शीलता के ही कारण है गायत्री का देवता सविता है सविता का मतलब रोशनी गर्मी देने वाले अग्नि पेंट के रूप

में होते हैं उसकी सूक्ष्म प्राण शक्ति से ओत पोत है
गायत्री की उपासना करने वाले को किसी का भी नहीं रहता है भयानक संकट आने पर बाहर निकालने वाली एक ही है गायत्री दूसरा कोई भी नहीं गायत्री का जप करने वाला कभी दुखी नहीं हो सकता वह स्वयं सक्षम हो दूसरों की भी मदद करता है वह एक राष्ट्र पुरुष बन जाता है समाज में उसकी रोशनी चारों तरफ चलती है स्वयं ज्ञानरूपी रोशनी से ओत पोत हो जाता है

 राजा जनक गायत्री की उपासना से पूर्णता को प्राप्त कर सके के पूर्व जन्म के पुरोहित बेडिल मरने के बाद पशु योनि में चला गया राजा जनक ने अपने पुरोहित से पूछा आप पशु योनि में क्यों चले गए पूर्व जन्म में गायत्री का मुख नहीं समझ पाया इसलिए मेरे पाप नष्ट नहीं हो पाए गायत्री का प्रधान अंग मुख अग्नि है जिस में जो कोई तारा जाता है सब बस में हो जाता है उसी तरह गायत्री कामुक जाने वाला आदमी विमुख होकर पापों से मुक्त हो जाता है और अमर हो जाता है मुख का तात्पर्य ज्ञान से है जो ज्ञानी हो जाता है वह मुक्त हो जाता है

जो आदिशक्ति गायत्री की जीवन रूपी नाव में बैठकर संसार का आनंद लेकर पार उतर जाता है मेरे गुरु श्री राम शर्मा ने अपनी पुस्तक में भविष्य का भी उल्लेख किया है पुस्तक पढ़ कर जो ज्ञान की रोशनी बढ़ती है मै वह मैंने आपके सामने शेयर की है

Monday 21 January 2019

स्वस्थ कैसे रहें

स्वस्थ कैसे रहें
 स्वस्थ रहने का मतलब क्या होता है? हम स्वस्थ आखिर रहेंगे क्यों? क्यों हमारे धर्म मैं सबसे पहले स्वस्थ रहने की बात की गई है?

आइए सारे सवालों का जवाब जानते हैं और मैं 100% जानता हूं कि इस लेखन को पढ़ने के बाद यदि आपने स्कोर अपने घरेलू जीवन में स्थापित कर लिया तो आपको कभी भी स्वास्थ्य के प्रति चिंता नहीं करनी पड़ेगी और आप निरोगी बन जाओगे

सबसे पहले शुरुआत करते हैं की आखिर स्वस्थ रहने का मतलब क्या होता है स्वस्थ रहने का मतलब आपका शरीर निरोगी है सुंदर है स्वच्छ है एवं अधिक श्रम करने में निपुण है

अगर आपको अपने जीवन का मकसद प्राप्त हो गया है तो आप का सबसे पहला कदम  स्वस्थ रहने में पढ़ना चाहिए क्योंकि बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अधिक श्रम करना पड़ता है और यदि आप की मशीन अथवा शरीर कमजोर है या रोगों से रहित है तो आप कभी अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकते हमारे धर्मों के अनुसार हमारा शरीर रोगों से लड़ने में सक्षम होता है 

बस वहां कार प्रगति थोड़ी धीरे होती है परंतु पीड़ा ना सहन कर पाने पर हम दवाओं का मार्ग अपनाते हैं और यहां एक गलत कदम होता है दवाई किसी पर रहम नहीं करती वे रोग को तो खत्म कर देती हैं अथवा हमारे सुरक्षा बल को भी नष्ट कर देती हैं और जब सुरक्षा बल खत्म हो जाता है तो नया आने से पहले दूसरा रोग उत्पन्न हो जाता है और यहां प्रक्रिया चलती रहती है और हम जीवन भर के लिए रोग रहित हो जाते हैं

 तथापि हमें अपने शरीर को ही अपना काम करने देना चाहिए आज हम बहुत सारें असत्य मैं जी रहे हैं जैसे भोजन पेट भरकर करना चाहिए सुबह शाम करना चाहिए परंतु यह सही नहीं हमें खाने में पका हुआ भोजन नहीं लेना चाहिए क्योंकि उसके कई सारे तत्व पकाने में निकल जाते हैं

 तथापि अंकुरित भोजन या कच्चा भोजन लेना चाहिए और एक ही बार भोजन करना चाहिए तथा पूरे दिन फल और पानी का सेवन करना चाहिए स्वस्थ और निरोगी रहने के लिए हफ्ते में 2 दिन उपवास रहना चाहिए और रोज योगा और व्यायाम करना चाहिए क्या करने से आप स्वस्थ निरोगी जवान लंबी उम्र जीने वाले और सुंदर बने रहेंगे

Sunday 20 January 2019

अपने ही बच्चों के दुश्मन

                       अपने ही बच्चों के दुश्मन

बहुत से माता-पिता अपने बच्चों को बहुत प्रेम करते हैं उसे कोई कार्य नहीं करवाते हैं जो मांगते हैं तुरंत देते हैं  खाने पीने की चीजों से लेकर घूमने फिरने तक हर चीज की आजादी देते हैं बच्चों के हाथ में बिना मांगे पैसा बढ़ा देते हैं 

कभी पूछते नहीं है कि तुमने कहां खर्च किए हैं इतना फ्रैंक बना देते हैं कि दूसरों का सम्मान करना भूल जाते हैं माता-पिता अपने बच्चों  के दुश्मन की होते हैं वह  ऐसा करके अपने बच्चों की पैर पर कुल्हाड़ी ही मारते हैं कहने का तात्पर्य है कि वह अपने बच्चों को बिगाड़ देते हैं अपने बच्चों को बदतमीज ही बनाते हैं

 बड़े होकर यह बच्चे सब का आदर करना भूल जाते हैं और माता-पिता की जिंदगी भर की कमाई पूंजी पर ऐश करते हैं और उसे बर्बाद कर देते हैं एक शत्रुघ्न सिन्हा की फिल्म आई थी औलाद के दुश्मन उसमें शत्रुघन सिन्हा किस तरह प्रेम करके अपने बच्चों का भविष्य बिगाड़ देता है चाहे वह लड़की हो या लड़का हो इतना प्रेम मत करो कि वह बिगड़ जाए जो माता-पिता अपनी लड़कियों को बहुत प्रेम करते हैं

 उन्हें कोई घर का कार्य नहीं करने देते हैं घूमने फिरने में आजादी देते हैं लड़कों की तरह उनसे व्यवहार करते हैं वह यह भूल जाते हैं कि वह अपनी बेटी को जिंदगी भर अपने पास नहीं रख सकते राजा जनक को भी अपनी बेटियों को विदा करना पड़ा था उन्हें एक दिन अपनी बेटी को विदा करना ही पड़ेगा इस तरह की लड़कियां घर काम नहीं किया वह

स्वयं की मां की तबीयत खराब होने पर कार्य नहीं करेंगी तो वह दूसरों की मा का  क्या ध्यान रखेंगी जो माता-पिता अपने बच्चों को इतनी छूटदे देते हैं कि उनसे पूछते तक नहीं है कि वह कहां जा रहे हैं बच्चे आजाद हो जाते हैं क्लब में घूमना पार्टी में जाना रात रात भर नशे में पड़े रहना यह सब उनके लिए आम बात हो जाती है आजकल सभ्य समाज में यह सब देखना आम बात हो गई है हम सब भूल गए हैं की संस्कारों में प्ले बच्चे ही महान बनते हैं

 उन्हें संस्कार देकर ही पा
लो नहीं तो उन्हें राक्षस बनने में समय नहीं लगेगा उन्हें इतना भी प्रेम मत करो की वे बिगड़ जाएं समय रहते अगर हमने अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दिया तो वह अपना जीवन बर्बाद कर लेंगे आप ही को दोष देंगे इसलिए आप अपने बच्चों को संस्कार से ही पाले संस्कार में पले बच्चे ही अपने माता पिता का नाम रोशन करते हैं समाज को उज्जवल बनाते हैं और संस्कारों से बनी लड़किया अपने घर को स्वर्ग बनाती हैं और समाज में उनके बच्चे अपना एक अलग ही स्थान बनाते हैं संस्कारों से निमित्त बच्चे समाज पूरे राष्ट्र में अपना वर्चस्व फैलाते हैं

कर्मों का फल

कर्मों का फल

मेरे घर के सामने एक बूढ़े बाबा रहते थे उन्होंने कभी विवाह नहीं किया था इसलिए उनका परिवार आगे ना बढ़ सका वह अकेले ही अपना जीवन यापन करते थे 

उनकी एक छोटी सी पान की दुकान थी उनका खर्चा उसी से चलता था मेरे पिताजी बहुत व्यवहारी और दयावान व्यक्ति है बाबाजी का अकेलापन उनसे देखा नहीं जाता था इसलिए बाबा जी के पास जाकर बैठ जाते उनका मनोरंजन करते थे उस जमाने में सभी कुएं से पानी भरा करते थे हमारे घर में भी कुएं से पानी भरा जाता था हम अपने घर का पानी भरते थे

 फिर पिता जी के कहने पर बाबाजी का भी कुएं से पानी भरा करते थे मेरे पिता जी बाबा जी की बहुत सेवा किया करते थे जब आप बीमार हो जाए तब हमारे घर से बाबा जी के के लिए खाना जाता था मेरे पिताजी बाबा जी के पैर दबाते थे उन्हें दवा दिलाने उनकी सेवा करना यह सब मेरे पिताजी ही किया करते थे हमारे घर के आस-पास के लोग बाबा जी को देखते भी नहीं थे उस समय मेरे पिताजी के ऊपर परिवार का बहुत भार था मेरे पिताजी के पिताजी का देहांत होने के बाद पूरा भार मेरे पिताजी के ऊपर आ गया दो छोटे भाई तो छोटी बहनों का विवाह उनको पढ़ाना लिखाना मेरे पिताजी की जिम्मेदारी थी

 वह जिम्मेदारी मेरे पिताजी ने निभाई भी अपने दोनों भाइयों का जॉब लगवाई दोनों बहनों का विवाह करवाया फिर उनके बच्चों का जन्मदिन संस्कार बहुत धूमधाम से किया करते थे जब उनके भाइयों अपना परिवार हो गया तब उन्होंने मेरे पिताजी से अलग होने की बात कही उस समय मेरे पिताजी ने अपनी जीवन की सारी पूंजी उन्हीं में लगा दी थी मेरे पिताजी ने कर्जा लेकर अपनी बहनों का विवाह किया था उस जमाने में 32000 का कर्जा था जो मेरे चाचा जी ने देने से मना कर दिया

 यहां तक कि घर से भी निकाल दिया हम सब सड़क पर आ गए एक किराए के घर में हमारा गुजारा चलता था फिर भी मेरे पिताजी अपने स्वभाव में परिवर्तन ना ला सके और बाबा जी की निस्वार्थ सेवा किया करते थे 1 दिन बाबा जी की तबीयत खराब हुई और उन्होंने मुझे बुलाया और मेरी झोली में ₹32000 डाल दिए और कहा अपने पिताजी को दे देना वह झोली भर कर मैं अपने घर आई और पिताजी को दिखाया तो उस झोली में ₹32000 निकले जैसे मेरे पिताजी ने अपना कर्जा पटाया कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे द्वारा किए अच्छे कर्म ईश्वर की नजर में होते हैं 

वह यहां सब देख रहे होते हैं हमें सदा अच्छे कर्म करना चाहिए फल देना ईश्वर का कार्य है जो निस्वार्थ भाव से सेवा परोपकार करता है ईश्वर भी रक्षा करते हैं हमें सदा यह समझना चाहिए हमारे अच्छे बुरे दोनों कर्म परमेश्वर देख रहा है वह दोनों कर्मों का फल देगा अच्छे कर्मों का और बुरे कर्मों का हम अगर एक अच्छा कर्म करते हैं और 10 गुना फल देता है इसलिए हमें सदा अपने कर्म अच्छे रखना चाहिए